हिंदू कारोबारी ने बनवाई मस्जिद
- 26 दिसंबर 2014

केरल के कन्नूर ज़िले का तलाशेरी शहर साठ के दशक से ही राजनीतिक हिंसा का केंद्र रहा है. इस शहर में पहली बार हिंदू-मुस्लिम हिंसा 1969 में हुई.
एक स्थानीय मंदिर से निकले हिंदुओं के जुलूस का रास्ता रोका गया और आरोप लगे कि एक होटल की छत से लोगों पर चप्पलें फेंकी गई थीं.
इसके बाद छिटपुट हिंसा में लोगों की जानें भी गईं. पिछले कुछ सालों में तलाशेरी और उसके आस-पास के इलाकों में सांप्रदायिक झड़पें 2003 में हुईं.
हिंसा का दौर

हिंसा की चिंगारी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिला स्तर के एक नेता अश्विनी कुमार की चलती बस में हुई हत्या के बाद फूटी थी.
आरोप लगे कि अक्तूबर 2002 में इरीढ़ी में मुस्लिम संगठन एनडीएफ़ के स्थानीय नेता अशरफ़ की हत्या के बाद बदले की कार्रवाई के तौर पर अश्विनी को निशाना बनाया गया था.
तब ज़िले में फैली हिंसा की घटनाओं को रोकने के लिए ज़िला प्रशासन को कर्फ्यू लगाना पड़ा था. ये इलाका सांप्रदायिक तनाव को झेलता रहा है.
हिंदू आप्रवासी

लेकिन अब 2014 में तलाशेरी से कुछ ही दूर पनूर में एक हिंदू आप्रवासी उद्योगपति ने मुसलमानों के लिए मस्जिद का पुनर्निर्माण कराया है.
तो स्थिति में ये बदलाव कैसे आया? या फिर, ये सौहार्द की कुछेक घटनाओं में ही एक है?
केरल के मुसलमानों का राजनीतिक दल मुस्लिम लीग मुखपत्र चंद्रिका निकालता है.
चंद्रिका के केरल ब्यूरो चीफ़ केके मोहम्मद बताते हैं, "बीते सालों में चीजें बदली हैं. इसी का असर है कि हिंदू मुस्लिम हिंसा के गवाह रहे इस शहर में एक हिंदू कारोबारी ने मस्जिद को दोबारा बनवाया है."
जिस व्यक्ति ने नचोली मस्जिद का पुनर्निमाण कराया, वो क़तर के बड़े कारोबारी आप्रवासी भारतीय पद्मश्री सीके मेनन हैं.
'कुछ वापस करूं'

मस्जिद बनवाने के कारणों के बारे में पूछे जाने पर सीके मेनन कहते हैं, "बचपन में मेरी परवरिश धर्मनिरपेक्ष माहौल में हुई और मुझे नहीं लगता कि इस बारे में ज्यादा बात किए जाने की जरूरत है."
थोड़ा कुरदने पर मेनन खुलते हैं और फिर वो इस मस्जिद को बनवाने के पीछे का असल कारण बताते हैं.
वे कहते हैं, "एक मुसलमान देश में मैं अपनी रोज़ी रोटी कमाता हूं. तो मैं क्यों न इस्लाम पर यकीन करने वालों को कुछ वापस करूं? यह एक कारण है जिसकी वजह से मैंने इस मस्जिद का पुनर्निमाण करवाया."
मेनन की मस्जिद

इस मस्जिद को फिर से बनवाने में एक करोड़ रुपए की लागत आई है और यहां 500 से ज्यादा लोग नमाज़ अदा कर सकते हैं.
स्थानीय लोग सीके मेनन के प्रति आभार जताते हुए इस मस्जिद को मेनन की मस्जिद कहते हैं.
सामाजिक कार्यकर्ता सुधाकरन का कहना है कि इस इलाके में अमूमन तनाव रहता था और मेनन की इस पहल से सामाजिक सद्भाव की भावना को बढ़ावा मिलेगा.
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